July 23, 2011

कहां से आ गया इतना पैसा !!!!!!


मतलब हद ही हो गई है भई एक के बाद एक...एक के बाद एक...क्यों अचानक ऐसी बाढ़ आ गई है और क्या हो गया है भारतीय कार बाज़ार को अचानक कि सभी कंपनियों की स्टीयरिंग इंडिया की ओर घूम गई है। और कहां से अचानक इतना पैसा आ गया है कि सभी कंपनियां दामन फैलाए आ गई हैं अपनी झोली भरने के लिए...गाड़ियों की कहानी सुनते सुनाते मुझे काफ़ी साल हो गए हैं...लेकिन कभी भी ऐसी मारामारी नहीं देखी जैसी हाल में देखी हैदो तीन हफ़्तों में इतने लौंच। करोड़ों की कार नहीं हो गई हीरो हौंडा स्प्लेंडर या बजाज डिस्कवर हो गई कि हर दिन एक नया वेरिएंट उतार दो...अरे ये तो करोड़ों की कारें हैं...करोड़ों की..फिर अचानक क्यों इतनी बाढ़ आ गई है....फेरारी ने भारत में अपनी एंट्री मार ही ली हैफिर अचानक देखते हैं कि बेंटली ने अपनी लेटेस्ट वाली कांटिनेंटल जीटी उतार दी। और वो भी करोड़ 90 लाख रु की एक्सशोरूम क़ीमत के साथ...यानि ऑनरोड दो करोड़ से ऊपर। अब वो कार आई तो आईलौंच से पहले दस बुकिंग भी पा गई । कहने का मतलब ये कि दस हिंदुस्तानी रईसों ने आते ही करोड़ों की इस कार को अपने गेराज में सजाने के लिए पैसे ख़र्च कर दिए। और सीधा हिसाब है कि क्यों नहीं बेंटली भारत में अपनी लेटेस्ट कारों को फटाफट उतारे। अपने गल्ले में 20 करोड़ किसे पसंद नहीं होंगे।
चलिए इस बुकिंग की गिनती कर ही रहा था कि मासेराती आ गई। अब लग्ज़री और स्पोर्टी कार बनाने वाली ये कंपनी इटैलियन है। कार प्रेमी और ऑटोमोबील दीवानों को तो बखू़बी पता है इस कंपनी और उसकी कारों के बारे में लेकिन भारत में इस कार का आम इमेज बहुत मज़बूत नहीं जितना फेरारीलैंबोर्गिनी जैसी इटैलियन कंपनी का है। लेकिन फिर भी कंपनी आ चुकी है पूरे लाव लश्कर के साथ । भारत में अब सभी मासेराती मॉडल मंगाए जा सकते हैंऔर क़ीमत है मात्र सवा करोड़ से डेढ़ करोड़ के बीच । ये लीजिए। यहां भी करोड़ की क़ीमत का ऐलान तो ऐसा हो रहा था जिस आराम से नैनो की क़ीमत का वायदा कर दिया था रतन टाटा ने।और बात यहीं नहीं थमी...इन सबसे कहीं आगे ले जाकर प्राइस टैग को पटका है ऐस्टन मार्टिन कंपनी ने। इस ब्रिटिश ब्रैंड को हम ज़्यादा पहचानते हैं सीक्रेट एजेंट 007 जेम्स बांड की सवारी के तौर पर। जो कार बांड के इशारों पर नाचती गातीमिसाइल दागतीहीरोईन को पटाती भागती है। वो भी आ गई है भारत में । और आई ही नहीं हैमिसाइल दागती आई हैये मिसाइल है क़ीमत वाली। अब तक की सबसे मंहगी कार लेकर आई है कंपनी। वन सेवंटी सेवन मॉडल तो बीस करोड़ की आ रही है। यानि अब तक भारत में उतरने वाली सबसे मंहगी कार बन गई है । सोचिए एक कार के लिए 20 करोड़ कौन देगा। वैसे ये सवाल आमतौर पर करने से डरता हूं कि ना जाने कौन बगल से निकल कर आएगा और कहेगा कि एक दर्जन कारें तो बुक हो गई हैंकहां आप अपनी लोअर मिडिल क्लास मेंटैलिटी लेकर ऐसी कंपनियों के प्रेस कांफ्रेंस में घुस आते हैं। अगली बार से मेटल डिटेक्टर के साथ मेंटल डिटेक्टर भी होटेल की गेट पर लगवाना पड़ेगा । ताकि आप जैसी छोटी सोच वालों को वो बाहर ही पकड़ ले और हमें ऐसे एंबैरेसिंग सवालों से बचाए। अरे भई इंडिया अमीर हैलोगों के पास पैसे हैंवो पैसे ख़र्च भी करना अब जान गए हैं। और हमारी ही वो कार है जो उनके करोड़ों की असली वैल्यू जानती है।अभी एक और लौंच देखा जिसे अंग्रेज़ी में अनवीलिंग कहते हैंयानि घूंघट-उठाई । फ़ोर्ड फिएस्टा का। नहीं-नहीं नई फ़िएस्टा का ज़िक्र नहीं करूंगा करोड़ों की कारों के बीच। दरअसल फ़ोर्ड के चीफ़ ने एक बात कही। बड़े ज़ोरदार भरोसे से कहा कि इस दशक के ख़त्म होने तक भारत दुनिया में तीसरे नंबर का कार बाज़ार बन जाएगा। तो जब अमेरिकन कंपनी इस भरोसे को जता रही है तो समझ सकते हैं कि ये बढ़ोत्तरी हर तरह की कारों के सेगमेंट में होगी।मुझे याद है कि जब मैंने पिछली बार भारत की सबसे मंहगी कार के लौंच को देखा था। माइबाक। पूरा प्रगति मैदान हिला हुआ थाखलबली मची हुई थी । पांच करोड़ की कार के एक एक पार्ट पुर्ज़े को परखा जा रहा थानिहारा जा रहा था। कार के हर पहलू पर परिचर्चा चली हुई थी। लेकिन वहीं जब सोलह-सत्रह करोड़ की बुगाटी वेरोन लौंच हुई तब वैसी खलबली नहीं दिखी। और फिर 20 करोड़ की ऐस्टन मार्टिन आई तो और कम खलबली दिखी। दिलचस्प लगा ये ट्रेंड।कई लग्ज़री ब्रांड को भारत में संभालने वाले आशीष चोर्डिया कहते हैं कि पैसा ख़ूब आ रहा है भारतीय ग्राहकों के पास । पैसा बहुत तेज़ी से आ रहा है और ऐसे में करोड़ों की कार सबसे आसान रास्ता हो जाता है उस पैसे को शाही तरीके़ से खर्चने का। साथ में एक दिव्य सत्य से भी अवगत कराया। इन करोड़ों की कार ख़रीदने के लिए पैसा ख़ूब आ रहा है रीयल एस्टेट से। और इस सत्य से खुले ज्ञान चक्षु में अब सिर्फ़ प्लॉट और फ़्लैट घूम रहे हैं। सोच तो ये भी रहा हूं गांव की ज़मीन बेच कर एक ऑल्टो तो पहले ले लूं।
( कुछ वक़्त पहले ये प्रभात ख़बर में छपी थी)

July 20, 2011

क्रिकेट-कार-o-बार

बहुत मुश्किल है, भारत में रहें और क्रिकेट से दूर रहें। क्रिकेट से निर्लिप्त रहें। ये कैसे हो सकता है ? अभी हाल ही में दुबई में यात्रा के दौरान एक कीनियाई ,शख़्स से मिला था।  जो वर्ल्ड कप के बारे में बात कर रहा था। मैंने बिना ये समझते हुए कि वो क्रिकेट के बारे में कितना जानता है या भारत के बारे में कितना समझता है, अपने कागज़ पत्तर का काम निपटाते हुए एक ढीला-ढाला स्टेटमेंट दे डाला। जीहां भारत में तो क्रिकेट धर्म की तरह है...तो कीनियाई भाई ने बात दिल पर ले ली। अजी धर्म की तरह नहीं, धर्म ही है। आपको क्या लगता है मैंने लगान नहीं देखी। मैंने बड़ी दबी ज़ुबान में आंखें चुराते हुए कहा -यू आर राइट डूड । और 2 अप्रैल को वाकई लगा कि धर्म और धर्म जैसा होने के बीच क्या फर्क है। जिस धर्म के अनुयाई सब हैं...पप्पू-लल्लू हो या मंजीत-चरंजीत। सोनिया-राहुल हों या शाहरूख़ आमिर। और देश के गली-नुक्कड़ रास्तों चौराहों पर इस धर्म का एक ही मंत्रोच्चार होता रहता है- स्कोर क्या हुआ ?
ख़ैर तमाम टोने- टोटके के साथ जब मैंने किसी तरह टीम को वर्ल्ड कप को जितवा दिया तो छूटते ही तमाम ऐलान शुरु हो गए । कहीं से एक करोड़ बरस रहा था कहीं दो । बात केवल पैसे की होती तो मैं ये सब नहीं लिखता । बात गाड़ियों की है। ह्युंडै ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि अगर टीम जीतती है तो सभी टीम मेंबर को मिलेगी एक-एक नई ह्युंडै वर्ना । फ़ाइनल से पहले ही ऐलान हो गया था । लेकिन फ़ाइनल के नतीजे के बाद और युवराज को मैन ऑफ़ दी टूर्नामेंट का ख़िताब मिलने के बाद एक और ऐलान हुआ जिसने मेरे ज़ेहन में पुरानी तस्वीर फिर से ज़िंदा कर दी। रवि शास्त्री को  ईनाम के तौर पर कार मिली थी और पूरी टीम कैसे उस कार पर चढ़ कर स्टेडियम का चक्कर लगा रही थी। उस वक्त ना तो समझ थी और ना जानकारी कि कौन सी गाड़ी थी । बाद में पता चला कि उस कार का नाम ऑडी था। और इतने सालों बाद फिर से ऑडी ने ऐलान किया है युवराज को एक कार देने का। और सोचिए कि कैसे युवराज ने पल्टी है किस्मत । हाल में ऐसा भी वक्त आया था जब युवराज के प्रदर्शन को देखते हुए फिएट ने उन्हें अपने ब्रांड से अलग कर दिया था। 6 बॉल पर 6 छक्के के बाद फिएट ने युवी को अपनी पुंतो का ब्रांड एंबैसेडर बनाया और फिर फ़ॉर्म ख़राब होते ही पुंतो के ऐड से भी हटा दिया। ख़ैर शौकीन युवी काफ़ी हैं और उनके पास हैं कई बीएमडब्ल्यू कारें और सुना है हाल ही में आई है उनके पास इटैलियन स्पोर्ट्स कार लैंबोर्गिनी भी ।
मुझे ये बात ज़्यादा दिलचस्प लगती है कि कार ही क्यों दिए जाते हैं क्रिकेटरों को..डाबर क्यों नहीं ऐलान करता धोनी को एक क्विंटल हाजमोला देने का या फिर टीम इंडिया को ज़िदगी भर के लिए रीवाइटल की सप्लाई क्यों नहीं दी जाती है। हल्दीराम भुजिया भी नहीं देने का ऐलान करते । या आईसीआईसीआई हाफ़ रेट पर होमलोन क्यों नहीं दे देती। कारें आती हैं धड़ाधड़ लेकिन । सचिन को तो फेरारी मिल गई थी। दुनिया की सबसे तेज़ कारों में से एक। और यही वो इकलौता मंज़र है जब क्रिकेट के इस ख़ुदा में इंसानों वाली कमज़ोरी देखी गई थी जब रिपोर्ट आया था कि कार पर से ड्यूटी हटाने की गुज़ारिश की गई थी सचिन द्वारा। हालांकि सचिन को हाल में मिली वॉल्वो एस 80 भी।  इसके अलावा क्रिकेटरों का मोटरिंग की दुनिया से उपहार और पुरस्कार के अलावा भी रिश्ता है। सचिन फिएट के ब्रांड एंबैसेडर रहे हैं। बल्कि उनके ऑटोग्राफ़ के साथ एक स्पेशल एडिशन पालियो भी आई थी। लेकिन वो ज़्यादा बिकी नहीं। वैसे इस मामले में एक खिलाड़ी जो मेरे हिसाब से सबसे शौकीन हैं वो हैं कैप्टन कूल माही। जो एक असल बाइकर हैं शायद, गेराज में सुना है दो दर्जन से ऊपर बाइक्स हैं, पुरानी यामाहा आरडी 350 से लेकर सुपरबाइक्स तक। और ऊपर से कई एसयूवी तो हैं ही उनके पास। यहां तक कि एसयूवी का बाप हमर भी। साथ में उनकी बाइकर छवि की वजह से टीवीएस लंबे वक्त से धोनी से जुड़ी है।
बाकी खिलाड़ी भी दूर नहीं हैं। भले ही ब्रांड एंबैसेडर ना हों लेकिन फिर भी गाड़ियों से दूर नहीं हैं। जैसे रंग-बिरंगे हरभजन के पास है नई नवेली हमर। इस भारी भरकम एसयूवी के लिए काफ़ी इंतज़ार करना पड़ा भज्जी को और जब आई तो बेकरारी ऐसी कि बिना  नंबर प्लेट के कार घुमा ली और कट गया चालान।
वहीं अपने ताबड़तोड़ सहवाग रफ़्तार और ऑफ़रोडिंग से ज़्यादा पसंद करते हैं लग्ज़री। तो हाल ही में दिखी उनकी शाही बेंटली। जब वो प्रैक्टिस के लिए बाकी खिलाड़ियों के साथ पहुंचे।
ख़ैर ये लिस्ट काफ़ी लंबी है और शुरू हो जाएं तो रुकना मुश्किल है, लेकिन ये बात तो तय है कि गाड़ियों की इस फेहरिस्त को देखकर ये ज़रूर लगता है कि काश मैं भी क्रिकेटर होता।
(वर्ल्ड कप में जीत के बाद ये क्रिएटिविटी छपी थी प्रभात ख़बर में )

July 19, 2011

My way is the Highway


एक पन्ना जिस पर पूरा सोने का रंग पसरा हुआ था...और इस पूरे सुनहरे रंग के पन्ने पर सिर्फ़ दो और रंग दिखाई पड़ सकते थे...छिटपुट हरा रंग...और उसके बीच एक बहुत ही बारीक लकीर जो काले रंग की थी...सीधी काली लकीर...जिसे मैं पकड़े चला जा रहा था...ये सीधी लकीर कभी कभी मुड़ भी रही थी और कभी ऊपर और कभी नीचे जा रही थी...और मैं ख़ुद को जाते देख रहा था...ऊंचाई से, किसी काल्पनिक छोटे प्लेन या हेलिकॉप्टर पर सवार होकर...
बहुत सटीक तरीके से नहीं बता सकता कि ये कहां की बात है लेकिन मैं ये बता सकता हूं कि मैं राजस्थान में था
...जहां की लंबी सीधी सपाट सड़कें सम्मोहित करने वाली थीं...दोनों ओर सुनहरे रेत की टीले दीख रहे थे, सड़क किनारे कुछ कंटीले पौधे और छोटे पेड़ दिखाइ दे रहे थे और मीलों तक ख़ाली सड़कें (ना जाने क्यों हमने दूरी को किलोमीटर में नापना शुरू कर दिया...दूरी की सारी तासीर चली जाती है ) और इस दौरान वही रास्ते इतने नए और आकर्षक लग रहे थे जिन पर से मैं पहले भी गुज़रा था...लेकिन कार में, ज़्यादातर शीशे चढ़ाकर, एसी ऑन करके...लेकिन पहली बार मैं मोटरसाइकिल पर था...हवा के थपेड़े सिर को पीछे धक्का दे रहे थे और उसके शोर से कान भरा हुआ था...और साथ में आवाज़ थी उन बाइक्स की जिन पर मैं सवार होकर दिसंबर के शानदार मौसम में राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, पोखरन, जेसलमेर और ओसियां जैसी जगहों से गुज़र रहा था...नामी अमेरिकी मोटरसाइकिलें हार्ली डेविडसन पर । ये मोटरसाइकिलें दुनिया की सबसे नामी बाइक ब्रांड में सबसे पुरानी तो है ही, सबसे बड़ी भी कही जा सकती हैं। भारत में ये थोड़े वक्त पहले आई है औऱ अब भारत में मोटरसाइकिलों को असेंबल करने की तैयारी है। सुपरलो और आयरन 883 नाम के दो मॉडल कंपनी भारत में असेंबल करेगी और ये अब तक की सबसे सस्ती हार्ली मोटरसाइकिलें होंगी। साढ़े पांच से साढ़े छह लाख रु में। और इस राइड के ज़रिए ही कंपनी ने दोनों बाइक्स को पेश किया। लेकिन मज़े की बात ये थी कि केवल ये दो नहीं बल्कि 14 और मोटरसाइकिलें थीं जिन पर हम सवारी कर सकते थे । दरअसल ये मोटरसाइकिलें आमतौर पर लंबी दूरी पर जाने यानि क्रूज़िंग के लिए बनाई जाती हैं। और अमेरिका जहां दशकों से मोटरसाइकिल पर ख़ानाबदोशी को एक धर्म माना जाता है , इस बाइक को चलाना एक इबादत ।
राजस्थान के इस राइड के दौरान मुझे बहुत अच्छा लगा जब गांवों और कस्बों के किनारे खड़े नौजवानों और बच्चों ने हाथ हिलाकर हमार स्वागत किया
, एक बात खटकी भी कि एक भी ग्रुप ऐसा नहीं मिला जो हमारी तरह इन सड़कों पर निकला हो। और लगा कि भारत में अभी वो ट्रेंड आने में थोड़ा वक्त है जब लंबी राइड पर जाने वाले लोगों की तादाद बढ़ती जाएगी, क्योंकि फिलहाल सभी बाइक्स को रोज़मर्रा की यातायात का साधन तक ही मानते हैं...अलग अलग लोग, अलग अलग दुनिया के लोगों से मिलने और कुदरत के सभी रंगों से रूबरू होने का ज़रिया नहीं।
तो मैंने सोचा कि उन सभी प्रैक्टिकल लोगों से गुज़ारिश करूं कि आप भी निकलिए अपनी अपनी बाइक्स पर। ज़रूरी नहीं कि आप हार्ली पर ही जाएं
, आप एनफील्ड, करिज़्मा, यामाहा, पल्सर किसी पर भी जा सकते हैं, सिर्फ़ ये ध्यान रखिए कि वो स्वस्थ बाइक हो और रास्ते में आपका साथ ना छोड़े। रास्ते में ख़राब ना हो। लेकिन जाइए ज़रूर। क्योंकि आपको पता नहीं कि एक अच्छी लंबी राइड आपके लिए क्या कर सकती है...उस सफ़र के दौरान कई ऐसे मौक़े आएंगे जब आपको ना तो गुज़रे पल परेशान करेंगे और आने वाले पल की फिक्र होगी...आपके लाइफ़ को रीचार्ज कर सकते हैं ऐसे छोटे सफ़र, आप अपने ही देश को उस नज़र से देख पाएंगे जैसे आपने देखा नहीं था, मिट्टी की ख़ुशबू महसूस कर पाएंगे, नए लोगों से मिलेंगे, दिमाग़ खुलेगा और एक और बात...ख़ूब थकेंगे और आपको अच्छी नींद भी आएगी। ( कुछ वक़्त पहले ये प्रभात ख़बर में छपी थी )
बहुत दिनों से बहुत सारी बातें थीं, जो भटकती रहती थीं। कभी स्टोरी के फ़ॉर्मेट से बाहर, कभी कॉलम और वर्ड लिमिट के बाहर, कभी टॉपिक की टॉपिक से भी बाहर, लगा कि कहीं ये सारी बातें दिमाग़ से भी बाहर ना चली जाएं...तो सोचा कि दस्तावेज़ रखूं मैं...उन सभी बातों का जो अभी किसी फ्रेम में फ़िट नहीं बैठ रहे, मेरी तरह। इस उम्मीद के साथ कि आगे जाकर शायद एक ऐसा कोलाज बन पाएं जो बहुत ख़ूबसूरत हो ।