August 09, 2011

क्या मुमकिन है U-Turn?


अगर मेरे पास पैसे होते, एक बड़ा गेराज होता तो मैं भी शायद एक एंबैसेडर कार ख़रीदता । और सजा कर रखता उसे। सजा के रखता मतलब धांसू कलाकारी होती उस पर, बिल्कुल क्रांतिकारी लुक । हो सकता है कि मैं उसके ऊपर अपने प्यारे फ़िल्मी ऐक्टर की तस्वीरें हाथ से पेंट करवाता, या फिर चटख़ लाल रंग में लपेट कर  सीटें बदलवा कर उसे अंदर से चमकाता, जिसे कहते हैं पॉप आर्ट । ख़ास मौक़ों के लिए होती वो कार, जब मेरा अराइवल होता ऐंबैसेडर पर।  लेकिन वो मेरी दूसरी या तीसरी कार होती। सिर्फ और सिर्फ शौक के लिए। नौस्टेल्जिया की लंबी ड्राइव पर जाने के लिए, भीड़ से अलग दीखने के लिए। प्रैक्टिकल ज़रूरतों के लिए नहीं। प्रैक्टिकल ज़रूरत के लिए मैं जापानी कार रखता । जो माइलेज देती, जिसे चलाने में झंझट नहीं होता...मेंटेन करना आसान होता और जो भरोसेमंद होती। दुख होता है, कि ये सबकुछ एंबैसेडर की ख़ूबियां हो सकती थीं।
एंबैसेडर जीते-जीते ही अतीत बन चुकी है, ज़िंदा ही मरणोपरांत हो गई है। लगता है कि आजकल जो चल रही है वो प्रेत है उस कार की जिसने हम सबके जीवन को कभी ना कभी ज़रूर छुआ होगा। कभी किसी यादगार ड्राइव पर ज़रूर ले गई होगी, या फिर एंबैसेडर में पूरी फ़ैमिली ठूस कर पिकनिक पर ज़रूर गए होंगे। मैं गया था । कभी इसी कार से अपने नेता को उतरते देखा होगा जिस ज़माने में नेता इज़्ज़तदार और इंसान होते थे, कई बार दोनों होते थे । जब सरकारी अफ़सरों के घूस के पैसे गिनते-गिनते नोट गिनने वाली मशीन गर्म नहीं हो जाया करते थे। रूतबा का मतलब इज़्ज़त और ताक़त का मतलब जनाधार था । और देश की ही तरह अपनी तमाम कमियों और खूबियों के साथ इस वक्त की असल निशानी थी एंबैसेडर कार.  लेकिन भारत ने अब तरक्की कर ली है । ज्वाइंट फ़ैमिली को हम सिर्फ़ रात के नौ बजे डिनर के साथ देख सकते हैं। छोटा परिवार सुखी परिवार कहलाता है। आईएएस दंपत्ति इतना घूस कमा रहे हैं कि नोट की गड्डियां बिस्तर बनी हैं। जनता को नेता की पिटाई करने में ज़रा सा भी वक्त नहीं लगता और नेता का रुतबा दबंगई में तब्दील हो चुका है । और उस वक्त  के साथ, उस वक्त की निशानी भी ख़त्म हो गई, एंबैसेडर भी ख़त्म हो गई। अफ़सरों के लिए सरकार एसएक्स 4 ख़रीद रही है, नेता बुलेटप्रूफ़ एंडेवर में घूम रहे हैं। सत्ता के गलियारों से, संसद और सड़क से, लोगों के ज़ेहन से ये कार आउट हो गई है।
कई नए वर्ज़न आए इस कार के लेकिन ऑल्टो और फीगो के ज़माने में, सफ़ारी और एंडेवर के ज़माने में  चुनौती कहीं ज़्यादा बड़ी हो चुकी है। अब एंबैसेडर कार बनाने वाली हिंदुस्तान मोटर्स कह रही है कार को बदला जाएगा। और ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो साफ़ लगेगा कि कार में छोटे मोटे कॉस्मेटिक बदलाव होंगे। लेकिन दावा बड़े बदलावों का है।  एक बात तो साफ़ है कि लुक को बदलने से अब कुछ नहीं होगा, इसकी टेक्नॉलजी और बनावट बदलनी होगी। ज़्यादा भरोसेमंद और किफ़ायती बनाना होगा। और वो भी बिना इसके इमेज के साथ खिलवाड़ किए। सब कुछ होने के बावजूद हमारे दिल के कोने में बसी है ये सवारी।
देखते हैं 2012 या 13 में कौन सी एंबैसेडर आएगी, जो नए वक्त के हिंदुस्तान की पहचान बनेगी। या फिर पिटे हुए हीरो की नाकाम वापसी होगी। फ़िलहाल पैसे तो जमा कर ही रहा हूं...देखते हैं ...
(कुछ दिनों पहले प्रभात ख़बर में छपी थी)

2 comments:

Health n Travel said...

bahut achci baat kahi hai aapne sir....1997 mein mere ghar mein bhi ek ambassador thi..papa ne kharidi thi second hand...chaar model hote thay uss time pe...mark 1, mark 2, mark 3 mark 4...ambassador nova...hamaare yahaan mark 3 ya shaayad mark 3 thi..1980 model...main 7th standard mein tha...chalanaa bhi seekha usse...meraa driver baaburaam sikhata tha....but abi agar brand new ambassador mein baithaa jaaye toh uskaa araam uska lutf, uski shaan kamaal hai...meri kabhi aukaat hogi toh zaroor ek ambassador loonga...aur LADDAKH...vrrrrooooooommmmm.....andone more thing sir... i love ur show RAFTAAR...ur presentation mind blowing...meraa bhi aisaa show banaane ka mann hai...i m also in media...abhi haal he mein maine raftaar ke kai saare episodes jo maine miss kar diye tha usko ndtvkhabar.com pe dekhaa...ek aur baat sir...aap jald he ambassador lijiye aur uske baare mein raftaar pe dikhaaiye...aur uss episode ko ndtvkhabar pe daalna mat bhooliyega....

Prashant
New Delhi

amardeep said...

अच्छा लिखते हो क्रांति भाई . अपनी मनपसंद मोटर साइकिल के बारे में भी लिखो