February 12, 2013

For Harley Lovers and others


हार्ली की नई फ़ैटबॉब


बार बार बात होती है दो तरीके के भारत की...तो बाज़ार में भी इसकी झलक ज़रूर दिखती है। एक तरफ़ हम गाड़ियों की बिक्री को गिरते हुए देख रहे हैं, तो उसी में से स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेह्किल की बिक्री ज़ोरदार बढ़ रही है। एक तरफ़ लोग ज़्यादा से ज़्यादा प्रैक्टिकल और किफ़ायती गाड़ी की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शौकीनों की तादाद भी कम नहीं हो रही है। बढ़ ही रही है। जैसे इस हफ़्ते एक लौंच देखने को मिला दिल्ली में। नामी अमेरिकी क्रूज़र बाइक्स बनाने वाली कंपनी हार्ली डेविडसन लेकर आई है अपनी सबसे लेटेस्ट फ़ैटबॉब। दरअसल ये दो मोटरसाइकिलों का रिमिक्स है। हार्ली डेविडसन अपनी मोटरसाइकिलों को पांच फ़ैमिली में बांटती है। बनावट, फ़ीचर्स और इस्तेमाल के हिसाब से। इन्हीं में से हार्ली के दो मोटरसाइकिल हैं, जो पहले से मौजूद हैं, फ़ैटब्वाय और स्ट्रीट बॉब। इनमें से फ़ैटब्याव के चाहने वाले तो बहुत हैं, जो तब नामी हुआ था जब आर्नौल्ड श्वार्ज़ेनेगर ने सुपरहिट फ़िल्म टर्मिनेटर में चलाया था। भारत में फ़िलहाल इस बाइक की क़ीमत थोड़ी ज़्यादा है। कंपनी ने माना कि ये दोनों बाइक्स काफ़ी पसंद रहे हैं, लेकिन ग्राहक की तरफ़ फ़ीडबैक मिला। तो ऐसे ही कुछ फीडबैक के बाद कंपनी ने इस मोटरसाइकिल को लाने का फ़ैसला किया। फ़ैटब्वाय और स्ट्रीट बॉब को मिलाकर कहानी बनी है फ़ैटबॉब की।
ये मोटरसाइकिल हार्ली की वो छठी बाइक है, जो सीकेडी अवतार में आई है। यानि कंप्लीटली नॉक्ड डॉउन वर्ज़न में। जिसे हार्ली अपने हरियाणा स्थित असेंबली प्लांट में असेंबल करेगी। जिससे कि इस मोटरसाइकिल को ड्यूटी में छूट मिल पाए और इसकी क़ीमत कम रखी जा सके। लेकिन मज़े की बात ये कि इस छूट के बाद क़ीमत क्या हुई है, वो भी जान लीजिए। इसकी एक्स शोरूम क़ीमत है 12 लाख 80 हज़ार रु मात्र। जीहां लंबी कार, या छोटी एसयूवी की क़ीमत में मिल रही है एक हार्ली मोटरसाइकिल।



इसमें लगा है 1600 सीसी का इंजिन। जो ऑल्टो से डबल् साइज़ का है, और इसका टॉर्क 126 एनएम है। यानि बड़ी गाड़ियों से बेहतर टॉर्क वो भी एक दुपहिए में । तो सोचिए कि ताक़त का एहसास कैसा होता होगा । और इसी तजुर्बे को ख़रीदने वालों की संख्या बढ़ रही है। तो फिर से मुद्दा वही आ गया जिससे शुरू किया था। शौकीनों की बढ़ती तादाद। और ये शौक ही जो किसी को इस क़ीमत की बाइक ख़रीदने की सोचे। जो हो भी रहा है। सोचिए कि कैसे हार्ली ने लगभग ढाई साल के वक्त में दो हज़ार बाइक्स बेच दी है। और वो भी तब जब हार्ली मोटरसाइकिल की क़ीमत शुरू ही साढ़े पांच लाख के ऊपर होती है। और ये इसलिए भी बड़ा आंकड़ा है क्योंकि भारत में सुपरबाइक्स या बड़ी इंपोर्टेड मोटरसाइकिलों की बिक्री बहुत कम रही है। जापानी कंपनियों यामाहा, हौंडा, सुज़ुकी से लेकर इटैलियन डुकाटी तब बहुत बड़ी संख्या में बिक्री नहीं देख रहे थे। कुछ समय पहले तक इस सेगमेंट की सालाना बिक्री 500 -1000 बाइक्स की भी नहीं मानी जा रही थी। जिसमें एक वजह ये ज़रूर है कि ज़्यादातर बाइक्स वही थे जो सुपरबाइक्स थे, यानि बहुत ताक़तवर स्पोर्ट्सबाइक्स, जिन्हें संभालना आसान नहीं। लेकिन अगर हार्ली की बिक्री के आंकड़े को देखें तो लग रहा है कि लाखों की मोटरसाइकिलें अब नॉर्म बन चुकी है, ग्राहकों को स्वीकार हो चुकी हैं। अगर काम की सवारी उन्हें मिले तो भारतीय ग्राहक कार की क़ीमत में मोटरसाइकिल ख़रीदने में नहीं झिझक रहे।


*already published 

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