February 05, 2013

Wagon R Upgrade


फिर बदला समीकरण
साल की शुरूआत हो गई है, तो कंपनियां भी न्यू ईयर को हैप्पी करने में लग गई हैं। अपने पोर्टफोलियो को नया करने में लग गई हैं। यानि जिन भी कारों को वो नया कर सकती हैं, कर रही हैं। लग्ज़री ब्रांड से लेकर सस्ती कारों तक। मर्सेडीज़, बीएमडबल्यू और ऑडी ने अपने नए प्रोडक्ट्स, नए डीलरशिप या किसी ना किसी नए उपक्रम का ऐलान किया है। मारुति ने अपनी वैगन आर का नया अपग्रेड पेश किया है बाज़ार में। और इस बदलाव में सबसे अहम जो कंपनी गिना रही है वो है बेहतर माइलेज। अपग्रेड के नाम पर जो छोटे-मोटे बदलावों  का प्रोटोकॉल है उसे तो कंपनी ने निभाया है। तो बहुत फ़र्क नहीं महसूस होगा देखने में लेकिन कंपनी का ज़ोर 8 फीसदी बेहतर माइलेज पर ज़रूर है। हो भी क्यों नहीं, महंगाई और तेल की बढ़ती क़ीमतों के बीच माइलेज तो और भी अहम मुद्दा हो गया है, केवल भारत ही नहीं, ग्लोबल स्तर पर सभी माइलेज बढ़ाने में लगे हैं। तो मारुति ने नई वैगन आर की क़ीमत को दस हज़ार रु बढ़ाया है और 20.51 किमीप्रतिलीटर का माइलेज का दावा कर रही है। 
इस कार का ज़िक्र करना इसलिए नहीं चाह रहा था क्योंकि मुझे लगता है कि ये कार कोई क्रांतिकारी प्रोडक्ट होगी अब इस अवतार में। वही वैल्यू फ़ॉर मनी प्रोडक्ट है जो रहेगी भी...लेकिन इस लौंच का मैं उस ट्रेंड की तरफ़ इशारा करने के लिए ज़िक्र कर रहा हूं जो मुझे लगता है कि फिर बदलने वाला है। डीज़ल का जो साम्राज्य फैल रहा था वो शायद थमेगा या फिर उस बाज़ार की बढ़ोत्तरी की रफ़्तार थोड़ी कम होगी। क्योंकि जिस ऐलान का इंतज़ार जानकार कर रहे थे, ग्राहक आशंकित थे और बाज़ार के पैरोकार जिसके लिए दलीलें दे रहे थे वो हो गया है।  




डीज़ल की क़ीमतें डीरेगुलेट हो गई हैं। सरकार के मुताबिक तेल कंपनियों को डीज़ल की क़ीमत को ख़ुद तय करने का आधिकार दिया गया है। ख़बर ये भी आ रही है कि 4-5 रुपए तो नहीं लेकिन हर महीने धीरे धीरे डीज़ल की क़ीमतों को बढ़ाया जाएगा। 45 पैसे प्रतिलीटर तो बढ़ाया ही गया है, साथ ही पेट्रोल की क़ीमतों को 25 पैसे प्रतिलीटर कम भी किया गया। तो सिलसिला शुरू हो गया है और कहां जाएगा अभी भी बहुत साफ़ किसी को नहीं पता है। अब तक जिस तरीके से तेल की क़ीमतों का निर्धारण हुआ है वो आम लोगों के लिए तिलिस्मी रहा है । पेट्रोल क़ीमतें सरकारी नियंत्रण में नहीं हैं फिर भी चुनावों के हिसाब से क़ीमतों को घटाने बढ़ाने की टाइमिंग दिखती रही है। वहीं डीज़ल पर सब्सिडी के लिए पिछले कुछ सालों में ज़ोरदार आलोचना सुनाई दे रही थी, ख़ासकर नेताओं के द्वारा। जिसमें सबसे बड़ी दलील ये दी जाती थी महंगी एसयूवी वाले ग्राहक डीज़ल सब्सिडी का फ़ायदा ले रहे हैं। ऐसे में कई विरोधाभासी रिपोर्ट भी आ रहे थे जिसके हिसाब से कुल डीज़ल के इस्तेमाल में पर्सनल गाड़ियां 5-7 फीसदी ही खपत करती हैं।  यूटिलिटी या स्पोर्ट्स यूटिलिटी कारें । यानि हल्ला भले ही प्राइवेट कारों का था लेकिन डीज़ल का बड़ा इस्तेमाल पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन, पब्लिक कैरिज और कारख़ानों में होता है। तो सब्सिडी दी जाए या नहीं दी जाए, इसके पक्ष विपक्ष में तमाम ठोस तर्क ज़रूर थे, जिसमें पड़ने का कोई प्रयोजन नहीं रहा है अब। लेकिन पिछले दो-तीन सालों मे डीज़ल की क़ीमतों को लेकर जो पॉलिसी के स्तर पर उहापोह रहा है उसने बाज़ार को पूरी तरीके से बदल दिया।  
ग्राहकों ने लाइन लगा दी थी डीज़ल कारों के लिए , कार कंपनियों ने डीज़ल कारों में अपनी पूरी ताक़त और लागत झोंक दी। लेकिन अब ये संतुलन फिर बदलेगा। जो शायद बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था अगर अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी था । 
तो जिस बदलाव को ग्राहक अभी सिर्फ़ क़ीमतों के तौर पर देख रहे हैं कंपनियां उन्हें आने वाले सालों के ट्रेंड और बाज़ार की शक्ल समझने के लिए देख रही हैं। और अब इस डीरेगुलेशन से लग रहा है कि कार बाज़ार में एक बार फिर से नया संतुलन आएगा। पेट्रोल और डीज़ल कारो के बीच। ग्राहकों के फ़ैसले में भी अब नए समीकरण काम करेंगे। कार ख़रीदने का फ़ैसला केवल डीज़ल की क़ीमत को देख कर नहीं लिया जाएगा। 

No comments: